मंगलवार, 26 मई 2015

ग़ज़ल (ऐतवार)







ग़ज़ल (ऐतवार)

बोलेंगे  जो  भी  हमसे  बह  ,हम ऐतवार कर  लेगें 
जो कुछ  भी उनको प्यारा  है ,हम उनसे प्यार कर  लेगें 

बह मेरे पास आयेंगे ये सुनकर के ही  सपनो  में 
क़यामत  से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें 

मेरे जो भी सपने है और सपनों में जो सूरत है
उसे दिल में हम सज़ा करके नजरें चार कर लेगें

जीवन भर की सब खुशियाँ ,उनके बिन अधूरी है 
अर्पण आज उनको हम जीबन हजार कर देगें 

हमको प्यार है उनसे और करते प्यार बह  हमको 
गर  अपना प्यार सच्चा है तो मंजिल पर कर लेगें



ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 22 मई 2015

ग़ज़ल (ये रिश्तें)








ग़ज़ल (ये रिश्तें)

ये रिश्तें काँच से नाजुक जरा सी चोट पर टूटे 
बिना रिश्तों के क्या जीवन ,रिश्तों को संभालों तुम 

जिसे देखो बही मुँह पर ,क्यों  मीठी बात करता है
सच्चा क्या खरा क्या है जरा इसको खँगालों तुम 

हर कोई मिला करता बिछड़ने को ही जीबन में 
जीबन के सफ़र में जो उन्हें अपना बना लो तुम 

सियासत आज ऐसी है नहीं सुनती है जनता की
अपनी बात कैसे भी उनसे तुम बता लो तुम

अगर महफूज़ रहकर के बतन महफूज रखना है 
मदन अपने नौनिहालों हो बिगड़ने से संभालों तुम


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना