ग़ज़ल (खेल देखिये)
साम्प्रदायिक कहकर जिससे दूर दूर रहते थे
राजनीती में कोई अछूत नहीं ,ये खेल देखिये
दूध मंहगा प्याज मंहगा और जीना मंहगा हो गया
छोड़ दो गाड़ी से जाना ,मँहगा अब तेल देखिये
कल तलक थे साथ जिसके, आज उससे दूर हैं
सेक्युलर कम्युनल का ऐसा घालमेल देखिये
हो गए कैसे चलन अब आजकल गुरूओं के यार
मिलते नहीं बह आश्रम में ,अब जेल देखिये
बात करते हैं सभी क्यों आज कल जनता की लोग
देखना है गर उन्हें ,साधारण दर्जें की रेल देखिये
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
Happy deepawali.
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