ग़ज़ल (वक़्त की रफ़्तार)
वक़्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा है
नहीं
कल तलक था जो सुहाना कल वही विकराल हो
कल तलक था जो सुहाना कल वही विकराल हो
इस तरह से आज पग में फूल से कांटे चुभे हैं
चाँदनी से खौफ लगता ज्यों कालिमा का जाल हो
ये किसी की बदनसीबी गर नहीं तो और क्या
है
याद आने पर किसी का हाल जब बदहाल हो
जो पास रहकर दूर हैं और दूर रहकर पास हैं
याद आने पर किसी का हाल जब बदहाल हो
जो पास रहकर दूर हैं और दूर रहकर पास हैं
करते गुजारिश हैं खुदा से, मौत अब तत्काल
हो
चंद लम्हों की धरोहर आज अपने
पास है बस
ब्यर्थ से लगते मदन अब मास हो या साल हो
ब्यर्थ से लगते मदन अब मास हो या साल हो
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
इस तरह से आज पग में फूल से कांटे चुभे हैं
जवाब देंहटाएंचाँदनी से खौफ लगता ज्यों कालिमा का जाल हो
ये किसी की बदनसीबी गर नहीं तो और क्या है
याद आने पर किसी का हाल जब बदहाल हो
जो पास रहकर दूर हैं और दूर रहकर पास हैं
करते गुजारिश हैं खुदा से, मौत अब तत्काल हो
बहुत बढ़िया सक्सेना जी !!
bahut sundar!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंआप का तहेदिल से शुक्रिया मेरी इस रचना को अपना समय देने के लिए एवं अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए … स्नेह युहीं बनायें रखें … सादर !
जवाब देंहटाएंमदन मोहन सक्सेना
https://www.facebook.com/MadanMohanSaxena
आप का तहेदिल से शुक्रिया मेरी इस रचना को अपना समय देने के लिए एवं अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए … स्नेह युहीं बनायें रखें … सादर !
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आप का तहेदिल से शुक्रिया मेरी इस रचना को अपना समय देने के लिए एवं अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए … स्नेह युहीं बनायें रखें … सादर !
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