
ग़ज़ल (हार-जीत)
पाने को आतुर रहतें हैं खोने को तैयार नहीं है
जिम्मेदारी ने मुहँ मोड़ा ,सुबिधाओं की जीत हो रही
साझा करने को ना मिलता , अपने गम में ग़मगीन हैं
स्वार्थ दिखा जिसमें भी यारों उससे केवल प्रीत हो रही
कहने का मतलब होता था ,अब ये बात पुरानी है
जैसा देखा बैसी बातें .जग की अब ये रीत हो रही
अब खेलों में है राजनीति और राजनीति ब्यापार हुई
मुश्किल अब है मालूम होना ,किस से किसकी मीत हो रही
क्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
संग साथ की हार हुई और तन्हाई की जीत हो रही
ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
सच है, पाना है कुछ तो कुछ खोना भी होगा ही!
जवाब देंहटाएंक्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
जवाब देंहटाएंसंग साथ की हार हुई और तन्हाई की जीत हो रही
आज का कटु यथार्थ
बहुत सुंदर समसामयिक ग़ज़ल......
जवाब देंहटाएंअब खेलों में है राजनीति और राजनीति ब्यापार हुई
जवाब देंहटाएंमुश्किल अब है मालूम होना ,किस से किसकी मीत हो रही
सच में बहुत खूब ...वाह
क्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
जवाब देंहटाएंसंग साथ की हार हुई और तन्हाई की जीत हो रही katu satya ....
जी हां रीत बदल गई है..दरअसल जो कुछ लोगो की रीत थी वो बहुत लोगो की रीत बन गई है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंBahatreen....
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