अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल
कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातों को है कह पाना बहुत मुश्किल
ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल
कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है
क्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल
कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातों को है कह पाना बहुत मुश्किल
ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल
कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है
क्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल
ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शनिवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंकुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है
जवाब देंहटाएंक्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल .........
हर पंक्तियाँ लाजवाब है..बधाई !!
बेहतरीन ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गजल की पंक्तियाँ !
जवाब देंहटाएं(http://dehatrkj.blogspot.com)
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंlatest post आभार !
latest post देश किधर जा रहा है ?
ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
जवाब देंहटाएंअपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल
बहुत खूब
सुन्दर गजल
प्राञ्जल पोस्ट । सुन्दर गज़ल ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति। बधाई।।।
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