शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

ग़ज़ल (खेल जिंदगी)








गज़ल  (खेल जिंदगी)

दिल के पास है  लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी। 


जिनके साथ रहना हैं ,नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
खट्टी मीठी यादों को संजोने का ,है खेल जिंदगी।

 
किसी के खो गए अपने, किसी ने पा लिए सपनें
क्या पाने और खोने का ,है खेल जिंदगी।


उम्र बीती और ढोया है, सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का, है  खेल जिंदगी।


किसी को मिल गयी दौलत, कोई तो पा गया शोहरत
मदन बोले , काटने और बोने का ये खेल जिंदगी।

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

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