सोमवार, 27 जुलाई 2015

ग़ज़ल (जीबन :एक बुलबुला )



 ग़ज़ल (जीबन :एक बुलबुला )

गज़ब हैं रंग जीबन के गजब किस्से लगा करते 
जबानी जब  कदम चूमे बचपन छूट जाता है 

बंगला  ,कार, ओहदे को पाने के ही चक्कर में 
सीधा सच्चा बच्चों का आचरण छूट जाता है 

जबानी के नशें में लोग  क्या क्या ना किया करते 
ढलते ही जबानी के  बुढ़ापा टूट जाता है 

समय के साथ बहना ही असल तो यार जीबन है 
समय को गर नहीं समझे  समय फिर रूठ जाता है 

जियो ऐसे कि औरों को भी जीने का मजा आये 
मदन ,जीबन क्या ,बुलबुला है, आखिर फुट जाता है



मदन मोहन सक्सेना

2 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन बस इक पानी का बुलबुला ही तो है । बस समय रहते समझ आ जाए । बहुत सुंदर ।

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  2. हर जड़ वस्तु का आनंद अस्थाई होता है असली आनंद प्रेमानंद (कृष्णा प्रेम )हैं ब्रह्मानंद हैं

    बढ़िया ग़ज़ल कही है साफ़ भाषा में।

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