सोमवार, 23 नवंबर 2015

ग़ज़ल (वक़्त की रफ़्तार)


ग़ज़ल (वक़्त की रफ़्तार)
 
वक़्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा है नहीं
कल तलक था जो सुहाना कल वही  विकराल हो

इस तरह से आज पग में फूल से कांटे चुभे हैं
चाँदनी  से खौफ लगता ज्यों कालिमा का जाल हो

ये किसी की बदनसीबी गर नहीं तो और क्या है
याद आने पर  किसी का हाल जब बदहाल हो

जो पास रहकर दूर हैं  और दूर रहकर पास हैं
करते  गुजारिश हैं खुदा से,  मौत अब तत्काल हो

चंद लम्हों की धरोहर आज अपने पास है बस
ब्यर्थ से लगते मदन अब मास हो या साल हो


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

6 टिप्‍पणियां:

  1. इस तरह से आज पग में फूल से कांटे चुभे हैं
    चाँदनी से खौफ लगता ज्यों कालिमा का जाल हो

    ये किसी की बदनसीबी गर नहीं तो और क्या है
    याद आने पर किसी का हाल जब बदहाल हो

    जो पास रहकर दूर हैं और दूर रहकर पास हैं
    करते गुजारिश हैं खुदा से, मौत अब तत्काल हो
    बहुत बढ़िया सक्सेना जी !!

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  2. आप का तहेदिल से शुक्रिया मेरी इस रचना को अपना समय देने के लिए एवं अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए … स्नेह युहीं बनायें रखें … सादर !
    मदन मोहन सक्सेना

    https://www.facebook.com/MadanMohanSaxena

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  3. आप का तहेदिल से शुक्रिया मेरी इस रचना को अपना समय देने के लिए एवं अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए … स्नेह युहीं बनायें रखें … सादर !
    मदन मोहन सक्सेना

    https://www.facebook.com/MadanMohanSaxena

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  4. आप का तहेदिल से शुक्रिया मेरी इस रचना को अपना समय देने के लिए एवं अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए … स्नेह युहीं बनायें रखें … सादर !
    मदन मोहन सक्सेना

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