मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

ग़ज़ल (हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है )






हर  लम्हा तन्हाई का एहसास मुझको  होता  है
जबकि  दोस्तों के बीच अपनी गुज़री जिंदगानी है

क्यों अपने जिस्म में केवल ,रंगत  खून की दिखती
औरों का लहू बहता , तो सबके लिए पानी है

खुद को भूल जाने की ग़लती सबने कर दी है
हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है

दौलत के नशे में जो अब दिन को रात कहतें हैं
हर गलती की  कीमत भी, यहीं उनको चुकानी है

मदन ,वक़्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा  है नहीं
किसको जीत मिल जाये, किसको हार  पानी है

सल्तनत ख्वाबों की मिल जाये तो अपने लिए बेहतर है
दौलत आज है  तो क्या , आखिर कल तो जानी है

ग़ज़ल (हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है )
मदन मोहन सक्सेना


2 टिप्‍पणियां:

  1. आप का तहेदिल से शुक्रिया मेरी इस रचना को अपना समय देने के लिए एवं अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए … स्नेह युहीं बनायें रखें … सादर !
    मदन मोहन सक्सेना

    https://www.facebook.com/MadanMohanSaxena

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