मंगलवार, 10 मई 2016

ग़ज़ल(मुहब्बत)






नजर फ़ेर ली है खफ़ा हो गया हूँ
बिछुड़ कर किसी से जुदा हो गया हूँ
 
मैं किससे करूँ बेबफाई का शिकबा
कि खुद रूठकर बेबफ़ा हो गया हूँ 
 
बहुत उसने चाहा बहुत उसने पूजा
 मुहब्बत का मैं देवता हो गया हूँ 
 
बसायी थी जिसने दिलों में मुहब्बत
उसी के लिए क्यों बुरा हो गया हूँ 
 
मेरा नाम अब क्यों तेरे लब पर भी आये
अब मैं अपना नहीं दूसरा हो गया हूँ 
 
मदन सुनाऊँ किसे अब किस्सा ए गम 
मुहब्बत में मिटकर फना हो गया हूँ . 

ग़ज़ल(मुहब्बत)  

मदन मोहन सक्सेना

2 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आप का तहेदिल से शुक्रिया मेरी इस रचना को अपना समय देने के लिए एवं अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए … स्नेह युहीं बनायें रखें … सादर !
      मदन मोहन सक्सेना

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